ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नाड़ी दोष का वैज्ञानिक रहस्य एवं फल
आद्या नाड़ी वरम् हन्ति, मध्या नाड़ी च कन्यकाम्।
अन्त्या नाड़ी द्वयोर्हन्ति, नाड़ी दोषम् त्यजेद् बुध:॥
आयुर्वेद विज्ञान(Medical Science) के अनुसार हमारे दोनों हाथों के पास कलाई में मणिबंध रेखा के पास नाड़ियां होतीं हैं। आयुर्वैदिक वैद्य हमारे शरीर के रोगों का पता लगाने के लिये नाड़ी परीक्षण करते हैं और रोगों का पता लगाते हैं। इन नाड़ियों का हमारे शरीर के हृदय आदि अन्य सभी अंगों से सीधा सम्बन्ध होता है॥ ज्योतिष विज्ञान के अनुसार(According to Astrology)नाड़ी तीन प्रकार की होती है: 1. आद्या नाडी 2. मध्या नाड़ी 3. अन्त्या नाड़ी॥ इन तीन नाड़ियों(nerves) के द्वारा ही शरीर के सभी अंगों में रक्त का प्रवाह(Blood Circulation) होता है। वैसे तो मनुष्य़ शरीर में बहत्तर करोड नाड़ियां हैं। परंतु हम सभी मनुष्यों के हाथ के पास कलाई में मणिबंध रेखा के पास मुख्य रूप से तीन नाड़ियां होती हैं। महर्षि पतंजलि के योग दर्शन के अनुसार(According to Yoga Philosophy) हमारे शरीर में 72 करोड़ नाड़ियों में से तीन नाड़ियां मुख्य हैं: 1.इडा नाड़ी 2. पिंगला नाड़ी 3. सुषुम्ना नाड़ी॥ योग की इन्हीं तीन नाड़ियों को ज्योतिष शास्त्र में आद्या, मध्या और अन्त्या कहा गया है॥ ज्योतिष में नाड़ी दोष के द्वारा स्वास्थ्य (Health) का विचार किया जाता है। जब वर एवं कन्या दोनों के विवाह के लिये विवाह से पहले(Before Marriage) अष्टकूट गुण मिलान किया जाता है उस समय नाड़ी दोष का विचार वर एवं कन्या दोनों का विवाह के बाद स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या(Health Related Problems) के लिये किया जाता है। वर एवं कन्या दोनों की नाड़ी एक(same) नहीं होनी चाहियें। एक नाड़ी(same nerves) में विवाह वर्जित है। वर एवं कन्या दोनो कि नाड़ी अलग-अलग(Different) होनी चाहिये। कुल गुण 36 होते हैं जिसमें में नाड़ी को 8 गुण दिये गये हैं। यदि वर एवं कन्या दोनों की नाड़ी एक(same) हो तो नाड़ी दोष माना जाता है। ' ' यदि वर एवं कन्या दोनों की नाड़ी आद्या हो तो आद्या नाड़ी दोष के कारण विवाह के बाद वर(पति) की मृत्यु हो जाती है। यदि दोनों की नाडी मध्या हो तो मध्या नाड़ी दोष के कारण विवाह के बाद कन्या(पत्नी) की मृत्यु हो जाती है। यदि दोनों की नाड़ी अन्त्या हो तो अन्त्या नाड़ी दोष के कारण शादी के बाद वर-कन्या(पति-पत्नी) दोनों की मृत्यु हो जाती है इसीलिए नाड़ी दोष का त्याग करना चाहिये और अलग-अलग नाड़ी में विवाह करना चाहिये॥' '
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