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शतपथ ब्राह्मण में राजसूय, पिण्ड पितृ याग, अश्वमेध, वाजपेय आदि श्रौत यज्ञों का विवरण

शुक्ल यजुर्वेद की काण्व शाखा के शतपथ ब्राह्मण का विभाग, चयनक्रम एंव प्रतिपाद्य काण्व-शतपथ की व्यवस्था और विन्यास में विपुल अन्तर है। उसमें 17 काण्ड, 104 अध्याय, 435 ब्राह्मण तथा 6806 कण्डिकाएं है। •प्रथम काण्ड में आधान-पुनराधान, अग्निहोत्र, आग्रयण, पिण्डपितृयज्ञ, दाक्षायण यज्ञ, उपस्थान तथा चातुर्मास्य संज्ञक यागों का विवेचन है। •द्वितीय काण्ड में पूर्णमास तथा दर्शयागों का प्रतिपादन है। •तृतीय काण्ड में अग्निहोत्रीय अर्थवाद तथा दर्शपूर्णमासीय अर्थवाद विवेचित हैं। •चतुर्थ काण्ड में सोमयागजन्य दीक्षा का वर्णन हैं। •पञ्चम काण्ड में सोमयाग, सवनत्रयाग कर्म, षोडशी प्रभृति सोमसंस्था, द्वादशाहयाग, त्रिरात्रहीन दक्षिणा, चतुस्त्रिंशद्धोम और सत्रधर्म का निरूपण हैं। •षष्ठ काण्ड में वाजपेययाग का विवेचन है। •सप्तम काण्ड में राजसूय यज्ञ का विवेचन है। •अष्टम में उखा-सम्भरण का विवेचन है। •नवम काण्ड से लेकर बारहवें काण्ड तक विभिन्न चयन-याग निरुपित हैं। •तेरहवें काण्ड में आधान काल, पथिकृत इष्टि, प्रयाजानुयामन्त्रण, शंयुवाक्, पत्नीसंयाज, ब्रह्मचर्य, दर्शपूर्णमास की शेष विधियों तथा पशुबन्ध का निर

ग्रहों के उदय अस्त काल के अंश

एकादशामरेंगस्य तिथिसंख्याSर्कजस्य तु। कालांशा भूमिपुत्रस्य दश सप्ताधिकास्तथा॥ पश्चादस्तमयोSष्टाभि: उदय: प्रांमहत्तया। प्रागस्तमुदय: पश्चाद् अल्पत्वाद्दशभि: भृगो:॥

चण्डी पाठ (दुर्गा सप्तशती की महिमा)

दुर्गा सप्तशती(चण्डी पाठ)—अद्भुत शक्तियां प्रदान करता है नवरात्र के दौरान भगवती जगदम्बा को प्रसन्न करने के लिए साधक विभिन्न प्रकार के पूजन करते हैं जिनसे माता प्रसन्न हॉकर उन्हें अद्भुत शक्तियां प्रदान करती हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ विधि-विधान से किया जाए तो माता बहुत प्रसन्न होती हैं। दुर्गा सप्तशती में (700) सात सौ प्रयोग है जो इस प्रकार है:- मारण के 90, मोहन के 90, उच्चाटन के दोसौ (200), स्तंभन के दोसौ (200), विद्वेषण के साठ (60) और वशीकरण के साठ (60)। इसी कारण इसे सप्तशती कहा जाता है। दुर्गा सप्तशती पाठ विधि · सर्वप्रथम साधक को स्नान कर शुद्ध हो जाना चाहिए। · तत्पश्चात वह आसन शुद्धि की क्रिया कर आसन पर बैठ जाए। · माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें। · शिखा बाँध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर चार बार आचमन करें। · इसके बाद प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर देवी को अर्पित करें तथा मंत्रों से