साधन चतुष्टय वेदांत दर्शन के अधिकारी(Four Qualifications of Vedant Philosophy)

साधन चतुष्टय (Four Qualities of studentship in Vedant Philosophy)---------------------------------------
वेदांत दर्शन के अध्ययन में प्रवेश के  लिये साधन चतुष्टय (Qualities of studentship) की आवश्यकता होती है  मनुष्य के अंदर चार योग्यता(Qualifications) होनी अति आवश्यक है: 1. विवेक (Discriminatory intellect)  2. वैराग्य (Detachment or dispassionate objectivity)  3. शम दमादि छह सद्गुण (the six healthy qualities ) 4. मुमुक्षुत्व (burning desire for the ultimate knowledge)॥  सबसे पहले मनुष्य सज्जन पुरुषों का सत्संग करे, रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते हैं 'बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥' अर्थात बिना सत्संग के विवेक नही मिलता प्रभु कृपा के बिना सत्संग नही मिलता इसीलिये जब भगवान की कृपा हो तभी  सज्जन पुरुषों का  सत्संग करने का सौभाग्य मिलता है सज्जन पुरुषों का सत्संग  करने से पाप नष्ट होता है, कुसंस्कार नष्ट होता है एवम उत्तम संस्कार प्राप्त होता है, उचित अनुचित का विवेक मिलता है। सत्संग के द्वारा विवेक प्राप्त होता है, यह विवेक मनुष्य की पहली योग्यता(first qualification) है। जब मनुष्य की विवेक शक्ति पूर्ण रूप से जागृत  हो जाती है तब उसे संसार से वैराग्य(detachment) हो जाता है और संसार के विषय भोगों की आसक्ति(attachment ) नष्ट हो जाती हैं तब मनुष्य संसार के विषय भोगों में लिप्त नही होता, निष्काम भाव से कर्म करता है और अनासक्त भाव से संसार के भोग भोगता है तथा कर्म फल के बंधन से मुक्त हो जाता है यह वैराग्य मनुष्य की दूसरी योग्यता(second qualification) है॥ वैराग्य होने के बाद शम आदि छह सद गुणों का होना भी आवश्यक है ये षट सम्पत्ति है:1.शम (control of mind) 2.दम (sensory control) 3. श्रद्धा(faith) 4.समाधान(concentration) 5. उपरति(introspective withdrawal) 6. तितिक्षा(fortitude) ॥ जब मनुष्य शम दमादि षट सम्पत्ति के द्वारा जितेंद्रिय हो जाता है और आत्म संयम ( self control) कर लेता है  तब मानव को  मुमुक्षुत्व मिलता है  मुमुक्षु मनुष्य ईश्वर को जानने की मुमुक्षा रखता है और ज्ञान प्राप्त करता है। अपने ज्ञानाग्नि के द्वारा मुमुक्षु अपनी तृष्णा कामनाओं को जलाकर भस्म करता है॥ तब मुमुक्षु को वेदांत दर्शन के अध्ययन एवम श्रवण करने का अधिकार प्राप्त होता है। यह वेदान्त राज विद्या  ब्रह्म विद्या है॥

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