यज्ञ करने का विधान

यज्ञ कुण्ड में मेखला और योनि:  यज्ञ कुण्ड की तीन मेखलाएं होती हैं, तीन मेखलाओ में ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र का आवाहन एवम पूजन होता है। हवन कुण्ड के चारों तरफ़ चार वेदों का आवाहन एवम पूजन होता है। यज्ञ कुण्ड में नाभि पूजा, कण्ठ पूजा करने का विधान है। हवन  कुण्ड के मध्य में भगवान विश्वकर्मा का आवाहन किया जाता है॥ यज्ञ कुंड में योनि बनाकर योनि का आवाहन पूजा करने का विधान है अग्नि देवता के तीन मुख और सात जिह्वा है इसीलिये हवन कुण्ड में सप्तजिह्वा बनाकर अग्नि देव की सात जिह्वा का आवाहन पूजा किया जाता है॥ एक दिन के सामान्य हवन में भी हवन कुण्ड के उत्तर दिशा में पीतल या कांसा के भगौने में 256 मुट्ठी चावल का पूर्ण पात्र रखने का विधान है जो ब्रह्मा का भाग होता है और यज्ञ कुण्ड के दक्षिण दिशा(यजमान के दाहिने तरफ़) पीतल के भगोने में कुश के  ब्रह्माजी स्थापना करके ब्रह्माजी का आवाहन एवम पूजा करने का विधान है। चाहे एक ही दिन का हवन क्यों न हो परंतु एक दिन का सामान्य  हवन करते समय भी ब्राह्मण वरण करना बहुत आवश्यक है यदि हवन करते समय पुरोहित ब्राह्मण का तिलक लगाकर दक्षिणा वस्त्र देकर वरण न किया गया तो यज्ञ करने का कोई फल नही मिलता है। एक दिन के छोटे से हवन में भी यदि चावल का पूर्णपात्र रख कर ब्राह्मण कॊ दान नही किया एवम ब्रह्माजी का आवाहन पूजा नही किया तो यजमान का हवन करना बेकार है कोई फल नही मिलता यज्ञ निष्फल हो जाता है। यजमान लोग कंजूसी एवं आलस्य करते हैं तो यजमान कॊ दोष लगता है॥

Comments

  1. पूर्ण पात्र में 256 का आधार क्या है

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  2. 256 क्यों कारण बताएं
    256 क्या है

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  3. 2+5+6=13 1+3=4
    अथार्त चार वेदों का समान हिस्सा जिन वेदों के और ब्राह्मणों के द्वारा हमें ऐसे सुंदर यज्ञ कर्म पूजा विधानों का ज्ञान हुआ है उनके ऋण की पूर्ति हेतु 256 मुट्ठी चावल एवम वस्त्र दक्षिणा सहित पूजन किया जाता है।

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