अपरा विद्या(Physics) के द्वारा अपरा प्रकृति(Nature) के रहस्य का ज्ञान
भूमिरापोsनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च।
अहंकारं इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा॥ (गीता)
क्षिति जल पावक गगन समीरा।
पंच रचित अति अधम सरीरा॥ (रामचरित मानस)
एषा सा वैष्णवी माया महाकाली दुरत्यया।
आराधिता वशीकुर्यात् पूजा कर्तुश्चराचरम्॥ (दुर्गा सप्तशती)
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
अर्थ: भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद् गीता के सप्तम अध्याय ज्ञान विज्ञान योग के श्लोक न.4 में अपनी अपरा अष्टधा प्रकृति(Nature) का वर्णन किया है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश ये पाँच महाभूत और मन, बुद्धि, अहंकार ये ही आठ प्रकार से विभक्त भगवान् की भिन्ना अपरा प्रकृति है॥ प्रकृति के तीन गुण, महत्तत्व(बुद्धि), त्रिविध अहंकार, मन, पंच महाभूत के द्वारा इस स्थूल ब्रह्माण्ड और स्थूल भौतिक शरीर की सृष्टि हुई है।
दुर्गा सप्तशती के वैकृतिक रहस्य में अपरा प्रकृति का वर्णन है: यह अपरा प्रकृति अव्यक्त दुस्तर वैष्णवी माया है, प्रकृति त्रिगुणात्मिका है, प्रकृति योनि स्वरूपा है। यह अपरा प्रकृति ईश्वर की शक्ति है, यह अपरा प्रकृति परिवर्तनशील है। सत्त्व, रज, तम ये प्रकृति के तीन गुण हैं, भगवती महाकाली ही भगवान् विष्णु की योगनिद्रा हैं, ये सम्पूर्ण चराचर जगत् को अपने उपासक के अधीन कर देती है॥ जो देवी सभी भूत प्राणियों में विष्णुमाया के रूप में निवास करती है उन विष्णुमाया देवी को हम नमस्कार करते हैं।
अपरा प्रकृति की दो शक्तियाँ है: 1. आवरण शक्ति 2. विक्षेप शक्ति॥
अपरा विद्या(Physics) के द्वारा अपरा प्रकृति(Nature) के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है॥ अपरा विद्या(Physics) में प्रकृति, सभी तत्त्व, पंच महाभूत, ब्रह्माण्ड(Universe), अंतरिक्ष(Space), शिशुमार चक्र(Spiral galaxy), सप्तर्षि मण्डल, ध्रुव तारा, ग्रहों, नक्षत्रों, पृथ्वी आदि का विस्तृत वर्णन है॥
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