अपरा प्रकृति और परा मूल प्रकृति(Nature and Superior Nature)
प्रकृति दो प्रकार की होती है(There are two types of Nature): 1. अपरा प्रकृति(Nature) 2. प्रधान मूल प्रकृति(Superior Nature)
श्रीमद भगवद् गीता और दुर्गा सप्तशती में अपरा प्रकृति और प्रधान मूल प्रकृति का विस्तृत वर्णन है। श्रीमद देवी भागवत पुराण के नवम स्कन्ध एवं ब्रह्मवैवर्त महापुराण के प्रकृति खण्ड में भी परा प्रकृति और अपरा प्रकृति का विस्तार से वर्णन है। देवी भागवत पुराण एवं ब्रह्मवैवर्त महापुराण दोनों पुराणों में 18,000 श्लोक है॥ श्रीमद भगवद् गीता और दुर्गा सप्तशती दोनों ग्रन्थों में 700 श्लोक हैं॥
अपरा प्रकृति (Nature) का वर्णन:
भूमिरापोSनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च।
अहंकारं इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा॥ (गीता)
एषा सा वैष्णवी माया महाकाली दुरत्यया।
आराधिता वशीकुर्यात् पूजा कर्तुश्चराचरम्॥(दुर्गा सप्तशती
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद् गीता के सप्तम अध्याय ज्ञानविज्ञान योग में श्लोक न.4 में अपनी अष्टधा प्रकृति (Nature) का वर्णन किया है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश ये पाँच महाभूत तथा मन, बुद्धि, अहंकार ये ही आठ प्रकार से विभक्त भगवान् की भिन्ना अपरा प्रकृति है॥ दुर्गा सप्तशती के वैकृतिक रहस्य में अपरा प्रकृति का वर्णन है: यह अपरा प्रकृति अव्यक्त दुस्तर वैष्णवी माया है, प्रकृति योनि स्वरूपा है, त्रिगुणात्मिका है, सत्त्व, रज, तम ये प्रकृति के तीन गुण हैं, दशानना दशभुजा दशपादा भगवती महाकाली ही भगवान विष्णु की योगनिद्रा है, ये सम्पूर्ण चराचर जगत् को अपने उपासक के अधीन कर देती है। ये त्रिगुणात्मिका प्रकृति सभी भूतप्राणियों में विष्णुमाया के रूप में निवास करती हैं॥ अपरा प्रकृति की दो शक्तियाँ है: 1. आवरण शक्ति 2. विक्षेप शक्ति॥
अपरा प्रकृति परिवर्तनशील है, सगुण है॥
परा मूल प्रकृति(Superior Nature) का वर्णन:
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्॥ (गीता)
मातुलुंगं गदां खेटं पानपात्रं च बिभ्रती।
नागं लिंगं च योनिं च बिभ्रती नृप मूर्धनि॥ (दुर्गा सप्तशती
महालक्ष्मीर्महाराज सर्वसत्वमयीश्वरी।
निराकारा च साकारा सैव नानाभिधानभृत्॥
भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद् गीता के सप्तम अध्याय ज्ञानविज्ञान योग श्लोक न.5 में अपनी परा प्रकृति का वर्णन करते हुए कहते हैं अपरा प्रकृति से परे मेरी एक अन्य परा शक्ति है जो जीवों से युक्त है और परा प्रकृति सम्पूर्ण संसार का मूल है॥
दुर्गा सप्तशती के प्राधानिक रहस्य में पराशक्ति प्रधान प्रकृति के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है, मूल प्रकृति ही देवी की समस्त विकृतियों(अवतारों) की प्रधान प्रकृति है, मूल प्रकृति ही सब प्रपंच तथा सम्पूर्ण अवतारों का आदि कारण है। तीनों गुणों की साम्यावस्थारूपा अपरा प्रकृति भी उनसे अलग नहीं है। स्थूल-सूक्ष्म, दृश्य-अदृश्य, व्यक्त-अव्यक्त सब मूल परा प्रकृति के स्वरूप हैं। परा शक्ति सर्वत्र व्यापक हैं। अस्ति, भाति, प्रिय, नाम और रूप ---- सब परा प्रकृति ही हैं। वे सच्चिदान्दमयी परमेश्वरी सूक्ष्मरूप से सर्वत्र व्याप्त, निराकार, निर्गुण, निर्विकार, त्रिगुणातीत, कालातीत, अपरिवर्तनीय होती हुई भी भक्तों पर अनुग्रह करने के लिये परम दिव्य चिन्मय सगुणरूप से भी सदा विराजमान रहती हैं। वे अपने चार हाथों में मातुलुंग(बिजौरा), गदा, खेट(ढाल) और पानपात्र धारण करती हैं तथा मस्तक पर नाग, लिंग और योनि धारण किये रहती हैं॥ भुवनेश्वरी संहिता के अनुसार मातुलुंग कर्मराशि का, गदा क्रियाशक्ति का, खेट ज्ञानशक्ति का और पानपात्र तुरीय वृत्ति(अपने सच्चिदानन्दमय स्वरूप में स्थिति) का सूचक है॥ इसी प्रकार नाग से काल(समय), योनि से अपरा प्रकृति और लिंग से पुरुष का ग्रहण होता है॥ तात्पर्य यह है कि प्रकृति(nature), पुरुष और काल(Time)----तीनों का अधिष्ठान परमेश्वरी मूल परा प्रकृति(Superior Nature) ही हैं॥ परा प्रकृति अनादि, अनन्त, मन, बुद्धि, वाणी से परे, काल(समय) से परे कालातीत हैं। परा प्रकृति लिंग भेद से रहित है, वे स्त्री, पुरुष, नपुंसक कुछ भी नहीं है। निराकार परा प्रकृति की कोई लिंग या जाति नहीं होती॥ परब्रह्म और परा प्रकृति में कोई भेद नहीं है, परा प्रकृति और परब्रह्म एक ही हैं। परब्रह्म और परा प्रकृति निराकार, निर्विकार, निर्गुण, गुणातीत, अभेद कालातीत और अद्वैत हैं॥ जिस प्रकार परब्रह्म अनादि और अनन्त है उसी प्रकार परा प्रकृति भी अनादि और अनन्त है॥ परा प्रकृति ही सर्वसत्त्वमयी तथा सब सत्त्वों की अधीश्वरी हैं। मूल प्रकृति ही निराकार और साकाररूप में रहकर नाना प्रकार के नाम धारण करती हैं। सगुणवाचक सत्य, ज्ञान, चित् , महामाया आदि नामांतरों से इन मूल परा प्रकृति का निरूपण किया जाता है॥
Superior Nature(परा प्रकृति) is beginningless, endless, attributeless, timeless, changeless and formless(निराकार).
जय माता दी
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