प्रणाम ललित जी! वाणी के चार स्तरों को प.श्री राम शर्मा आचार्य जी की पुस्तक 'भाषण संभाषण की दिव्य क्षमता'में विस्तार से प्रामाणिक तरीके से बताया गया है,उसे आप अवश्य पढिये।यह पुस्तक आपको किसी बड़े गायत्री शक्तिपीठो पर मिल सकती है।धन्यवाद।
साधन चतुष्टय (Four Qualities of studentship in Vedant Philosophy)--------------------------------------- वेदांत दर्शन के अध्ययन में प्रवेश के लिये साधन चतुष्टय (Qualities of studentship) की आवश्यकता होती है मनुष्य के अंदर चार योग्यता(Qualifications) होनी अति आवश्यक है: 1. विवेक (Discriminatory intellect) 2. वैराग्य (Detachment or dispassionate objectivity) 3. शम दमादि छह सद्गुण (the six healthy qualities ) 4. मुमुक्षुत्व (burning desire for the ultimate knowledge)॥ सबसे पहले मनुष्य सज्जन पुरुषों का सत्संग करे, रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते हैं 'बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥' अर्थात बिना सत्संग के विवेक नही मिलता प्रभु कृपा के बिना सत्संग नही मिलता इसीलिये जब भगवान की कृपा हो तभी सज्जन पुरुषों का सत्संग करने का सौभाग्य मिलता है सज्जन पुरुषों का सत्संग करने से पाप नष्ट होता है, कुसंस्कार नष्ट होता है एवम उत्तम संस्कार प्राप्त होता है, उचित अनुचित का विवेक मिलता है। सत्संग के द्वारा विवेक प्राप्त होता है, यह विवेक मनुष्य की पहली योग्यता
यज्ञ कुण्ड में मेखला और योनि: यज्ञ कुण्ड की तीन मेखलाएं होती हैं, तीन मेखलाओ में ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र का आवाहन एवम पूजन होता है। हवन कुण्ड के चारों तरफ़ चार वेदों का आवाहन एवम पूजन होता है। यज्ञ कुण्ड में नाभि पूजा, कण्ठ पूजा करने का विधान है। हवन कुण्ड के मध्य में भगवान विश्वकर्मा का आवाहन किया जाता है॥ यज्ञ कुंड में योनि बनाकर योनि का आवाहन पूजा करने का विधान है अग्नि देवता के तीन मुख और सात जिह्वा है इसीलिये हवन कुण्ड में सप्तजिह्वा बनाकर अग्नि देव की सात जिह्वा का आवाहन पूजा किया जाता है॥ एक दिन के सामान्य हवन में भी हवन कुण्ड के उत्तर दिशा में पीतल या कांसा के भगौने में 256 मुट्ठी चावल का पूर्ण पात्र रखने का विधान है जो ब्रह्मा का भाग होता है और यज्ञ कुण्ड के दक्षिण दिशा(यजमान के दाहिने तरफ़) पीतल के भगोने में कुश के ब्रह्माजी स्थापना करके ब्रह्माजी का आवाहन एवम पूजा करने का विधान है। चाहे एक ही दिन का हवन क्यों न हो परंतु एक दिन का सामान्य हवन करते समय भी ब्राह्मण वरण करना बहुत आवश्यक है यदि हवन करते समय पुरोहित ब्राह्मण का तिलक लगाकर दक्षिणा वस्त्र देकर वरण न किया गया तो
विद्या दो प्रकार की होती है: 1.अपरा विद्या(Physics) 2. परा विद्या(Meta Physics) बुद्धि(प्रज्ञा) भी दो प्रकार की होती है: 1. व्यवसायात्मिका बुद्धि 2. निश्चयात्मिका बुद्धि(स्थितप्रज्ञ, ऋतम्भरा प्रज्ञा) अपरा विद्या(Physics): अपरा विद्या के द्वारा अपरा प्रकृति(Nature) का पूर्ण रहस्यमय ज्ञान प्राप्त होता है। अपरा प्रकृति को ही भौतिक प्रकृति(Material Nature) कहा जाता है। अपरा विद्या के लिये ज्ञान के अनेक ग्रंथ हैं, जैसे चारों वेद, छ: वेदांग, पुराण, दर्शन आदि ॥अपरा विद्या(Physics) के द्वारा भौतिकवाद(Materialism) का पूरा ज्ञान मिलता है। भौतिकवाद का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किये बिना अध्यात्म(Spirituality) को जानना असम्भव है। अपरा विद्या(Physics) का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किये बिना परा विद्या(अध्यात्म विद्या) (Meta Physics) को जानना असम्भव है॥ प्रकृति(Nature) का सम्पूर्ण रहस्य जाने बिना परा प्रकृति(Superior Nature) और परब्रह्म को जानना असम्भव है। अपरा विद्या(Physics) में अपरा प्रकृति(Nature) का वर्णन, बिन्दु विस्फोट सिद्धांत(Big Bang Theory), कृष्ण विवर सिद्धान्त(Black Hole Theory), गुरुत्वाक
कृपया उचित विश्लेषण कर के विस्तार से वाणी के प्रकार बताए।
ReplyDeleteप्रणाम ललित जी!
ReplyDeleteवाणी के चार स्तरों को प.श्री राम शर्मा आचार्य जी की पुस्तक 'भाषण संभाषण की दिव्य क्षमता'में विस्तार से प्रामाणिक तरीके से बताया गया है,उसे आप अवश्य पढिये।यह पुस्तक आपको किसी बड़े गायत्री शक्तिपीठो पर मिल सकती है।धन्यवाद।
Ek mann ki shanka hai ji ek bani hai guru gorakhnath ji ki kabira maine ehsa Anghad daya jeeu na maru nahi janmu kirpiya arth bataye Sir pls
ReplyDeleteThik hai, bataaunga
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