यौगिक धारणा द्वारा अन्तिम समय में शरीर त्याग की विधि
सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च।
मूर्ध्न्याधायात्मन: प्राणमास्थितो योगधारणाम्॥
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
य: प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्॥
योगी मनुष्य अन्त काल में यौगिक धारणा के द्वारा शरीर के नौ द्वारों का संयम करके मन की गति और हृदय गति का निरोध ( control of heart beat and mind) करके प्राणायाम की विधि से अपने प्राणवायु को रोककर दशम द्वार मूर्धा (ब्रह्मरंध्र) में स्थापित करता है। उसके बाद अक्षर ब्रह्म ॐ का उच्चारण- ब्रह्म चिन्तन करते हुए दशम द्वार ब्रह्मरंध्र से प्राण के साथ-साथ शरीर का त्याग करता है और परा गति (ब्रह्म सायुज्य) (liberation) को प्राप्त करता है॥
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