पंचांग निर्माण की तीन पद्धतियां
आधुनिक समय में पंचांग गणित की तीन पद्धतियां प्रचलित हैं:
1. सूर्य सिद्धान्त 2. ग्रह लाघवम्
3. दृग्गणित (केतकी चित्रापक्षीय)।
1. नेपाल के सारे पंचांग '' सूर्य सिद्धान्त'' नामक पुस्तक में दिये गये ज्योतिषीय गणित के अनुसार गणित करके बनाये जाते हैं। सिद्धान्त ज्योतिष का मुख्य शास्त्रीय ग्रन्थ '' सूर्य सिद्धान्त'' है। सूर्य सिद्धान्त का प्रतिपादन भगवान सूर्य ने किया था। भगवान सूर्य ने असुर शिल्पी मय दानव को सिद्धान्त ज्योतिष का ज्ञान प्रदान किया था॥
2. वाराणसी(काशी) के सारे पंचांग '' ग्रह लाघव'' नामक पुस्तक में दिये गये ज्योतिषीय गणित के अनुसार गणित करके बनाये जाते हैं। '' ग्रह लाघव'' भी सिद्धान्त ज्योतिष का मुख्य शास्त्रीय ग्रन्थ है॥ इसमें सूर्य-चन्द्रमा आदि ग्रहों के उदयकाल एवं अस्तकाल, बृहस्पति-शुक्र के उदय-अस्त एवं बाल्यत्व-वृद्धत्व दोष आदि में बहुत संस्कार करना पड़ता है॥
3. दिल्ली के सारे पंचांग '' दृग्गणित (केतकी चित्रापक्षीय)'' के अनुसार ज्योतिषीय गणित करके बनाये जाते हैं। दृग्गणित का अर्थ है '' ग्रहों-नक्षत्रों-तारों की उदय-अस्त समय जो स्थिति आंखों से प्रत्यक्ष दिखायी दे उसको मानकर गणित करें। दृग्गणित में सूर्य-चन्द्रमा आदि ग्रहों के उदयकाल एवं अस्तकाल, बृहस्पति-शुक्र के उदय-अस्त एवं बाल्यत्व-वृद्धत्व दोष में संस्कार करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है॥
Please send a copy of the book Grahalaghav
ReplyDeletegraha laghav siddhanta nahi karan paddhati par aadharit hai
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