देव शयन के चार महीनों तथा विशेष रूप से कार्तिक मास में विवाहों का निषेधों

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देव शयन के चार महिनों में विवाह का निषेध है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल दशमी तक ये चार महीने देव शयन के हैं। आषाढ़ शुक्ल एकादशी का नाम देवशयनी एकादशी है। देवशयनी एकादशी से चातुर्मास शुरू होता है,  अत: चातुर्मास काल में विवाह निषेध है। कार्तिक मास में विवाह नहीं करना चाहिये। कार्तिक मास में सूर्य तुला राशि का होता है। तुला राशि में सूर्य नीच का होता है इसीलिए कार्तिक का सूर्य नीच राशि का होता है, इसीलिए विशेष रूप से कार्तिक मास में विवाह निषेध है। अमावस्या तिथि श्राद्ध एवं पितृ कार्य के लिये उत्तम मानी जाती है। इसीलिए कोई भी शुभ कार्य अमावस्या तिथि में नहीं करना चाहिये। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार  अमावस्या तिथि में विवाह संस्कार आदि कोई भी शुभ संस्कार नहीं करना चाहिये। कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन भगवती महालक्ष्मी का पूजन होता है। परंतु कार्तिक कृष्ण अमावस्या दीपावली के दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में होते हैं इसीलिए चंद्रमा उस दिन अस्त होता है। जब चंद्रमा, बृहस्पति और शुक्र अस्त हो उस समय विवाह नहीं करना चाहिये। अमावस्या के दिन चंद्रमा अस्त होता है, इसीलिए अमावस्या के दिन विवाह निषेध है।  विवाह संस्कार के लिये सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति और शुक्र का बलवान होना आवश्यक है। तुला राशि का सूर्य, धनु राशि का सूर्य, मीन राशि का सूर्य, वृश्चिक राशि का चंद्रमा, मकर राशि का बृहस्पति एवं कन्या राशि के शुक्र में विवाह नहीं करना चाहिये। तुला राशि में सूर्य कार्तिक के 1 महीने में नीच राशि का होता है, वृश्चिक राशि में  चंद्रमा नीच का होता है, मकर राशि में बृहस्पति नीच का होता है एवं कन्या राशि में शुक्र नीच का होता है। नीच राशि में सभी ग्रह कमज़ोर होते हैं। यजुर्वेद के मंत्र  ' ' सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च' '  के अनुसार  सूर्य जगत की आत्मा है इसीलिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य आत्मा का कारक है। यदि तुला के सूर्य में विवाह करेंगे तो वर--वधू दोनों की आत्मिक शक्ति कमज़ोर होगी या दोनों में से किसी एक की रोग--प्रतिरोधक क्षमता(resistance power) शरीर के अंदर विद्यमान रोगों से लड़ने की  शक्ति कम होगी। वेद मंत्र '' चंद्रमा मनसो जात:'' के अनुसार भगवान विराट पुरुष के मन से चंद्रमा प्रकट हुआ इसलिये ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा मन का कारक है। कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों  तुला राशि में होते हैं। दीपावली के दिन सूर्य नीच राशि का औऱ चंद्रमा नीचाभिलाषी एवं अस्त होता है अत: यदि अमावस्या के दिन अस्त चंद्रमा या वृश्चिक राशि के नीच चंद्रमा में विवाह करेंगे तो वर--वधू दोनों में से किसी एक की मानसिक शक्ति कमजोर होगी, मानसिक शक्ति  कमजोर होते ही अपने शरीर एवं मन की रक्षा करने में मनुष्य सफल नहीं हो पाता।  इसीलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के अलावा कोई भी शुभ कार्य विवाह संस्कार आदि न करें॥ शुक्र लिंग एवं योनि का कारक है, शुक्र स्त्री ग्रह है इसीलिए शुक्र पत्नी का कारक है, शुक्र प्रेम सम्बन्ध, भोग विलास  एवं शैया सुख का भी कारक है, शुक्र वीर्य एवं शुक्राणु का कारक है, शुक्र शारीरिक सम्पर्क एवं सुखी दाम्पत्य जीवन का कारक है, यदि कन्या राशि के नीच शुक्र एवं शुक्र अस्त काल में विवाह करेंगे तो वर-वधू के मध्य सुखी दाम्पत्य जीवन का अभाव, वीर्य में शुक्राणुओं की कमी, संतान उत्पत्ति में बाधा आयेगी। इसीलिए शुक्र के अस्तकाल में विवाह वर्जित है॥  बृहस्पति का एक नाम ' ' जीव' '  भी है इसीलिए बृहस्पति ' ' जीवन शक्ति' ' का भी कारक है। बृहस्पति संतान का कारक है विशेष रूप से बृहस्पति पुरुष ग्रह है इसीलिए पुत्र संतान का कारक है यदि मकर राशि के नीच बृहस्पति या गुरु अस्त काल में विवाह करेंगे तो विवाह के बाद वर-वधू दोनों में से किसी एक की जीवन शक्ति में कमी होगी एवं संतान उत्पन्न होने में बाधायें आयेंगी अत: बृहस्पति के अस्तकाल में विवाह वर्जित है॥

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