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Showing posts from October, 2017

समग्र सृष्टि गणित पर आधारित

गणित की उपयोगिता: "समग्र सृष्टि गणित पर आधारित है" एवम् शून्य का वैज्ञानिक और दार्शनिक सिद्धान्त (Scientific Theory of Zero) सृष्टि संरचना में भी गणित का उपयोग :- सारी सृष्टि गणित की देन है और सारी सृष्टि का ज्ञान गणित से हो सकता है। गणित में शून्य  से नौ तक अंक होते हैं। यह सम्पूर्ण विश्व शून्य मय है। ''सर्वम् शून्यमयं जगत्''। जब यह जगत नही था तब केवल शून्य का अस्तित्व था। शून्य निराकार और निर्विकार है। शून्य से ही यह सम्पूर्ण जगत उत्पन्न हुआ है। पृथ्वी भी शून्यमय है, पृथ्वी गोल है और शून्य गोल होता है। आकाश भी शून्यमय है। यह ब्रह्माण्ड(universe) भी शून्य से प्रकट हुआ है और यह ब्रह्माण्ड भी शून्य की तरह गोल है। प्रारंभ में कुछ भी नही था। केवल एक शून्यमय  बिन्दु था तब आज से खरबों वर्ष पूर्व बिन्दु विस्फोट(Big bang) हुआ तब उस बिन्दु विस्फोट(Big bang) से यह ब्रह्माण्ड प्रकट हुआ। यह ब्रह्माण्ड ब्रह्म का अंश है इसीलिए इस ब्रह्माण्ड को हिरण्यगर्भ(golden egg) कहा गया है। ''पूर्णमद:  पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥&

महर्षि और्व के नाम से अरब देश का नाम पड़ा

भृगु ऋषिका नाति (पौत्र)शुक्राचार्यको छोरो (पुत्र) को नाम ''और्व  ऋषि ” हो ! ऐतिहासिक रुपमा अरब देश को नाम ऋषि और्व कै नाम बाट राखिएको हो ! “हिस्ट्री अफ पर्शिया” का लेखक साइक्सले उल्लेख गर्दै भनेका छन् अरबको नाम और्व ऋषिको नाम बाट राखिएको हो र विकृत हुदै “अरब” हुन पुगेको हो। दैत्यगुरू शुक्राचार्य को नाम संस्कृत मा ''कवि'' पनि हो। ऋषि शुक्राचार्य सर्वश्रेष्ठ कवि हुनुहुन्छ उहाँ को काव्य प्रतिभा विलक्षण थियो।कालान्तर मा ऋषि शुक्राचार्य को नाम कवि बाट अपभ्रंश भयेर '' काव्या '' भयो। साउदी अरब मा  मुस्लिम हरू को प्रसिद्ध तीर्थस्थल मक्का को नाम '' काबा '' हो। ऋषि शुक्राचार्य ले मक्का मा बालू को शिवलिंग बनायेर राक्षस हरू को राजा दैत्यशिल्पी मयदानव लाई भगवान् शिव को उपासना गर्न को लागि आदेश दिनु भयो। अतः गुरू शुक्राचार्य को नाम '' काव्य''  अपभ्रंश भयेर कालान्तर मा मक्का को नाम '' काबा '' भयो । कलियुग को 3500 वर्ष व्यतीत भये पछि दैत्यगुरू ऋषि शुक्राचार्य ले आफ्नो पौत्र ऋषि और्व को तपस्थली मा असुरराज मयदानव लाई

जगद्गुरु भगवत्पाद आदि शंकराचार्य(अद्वैत वेदान्त दर्शन के प्रतिपादक)

ईसवी सन से ५०७ वर्ष पूर्व अर्थात आज से 2534 वर्ष (2 हजार पांच सौ 34 साल) पहले भगवान शिव जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के रुप में भारत के केरल क्षेत्र के कलाडि ग्राम में उत्पन्न हुऐ थे । आदि शंकर के पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम आर्याम्बा था। वायुपुराण में , शिव पुराण में शंकराचार्य को शिव का ही अवतार माना गया है । कुल बत्तीस वर्ष की आयु उन्हें प्राप्त थी । जब शंकर 5 वर्ष के बालक थे तब इनका यज्ञोपवीत संस्कार हो गया और ये गुरुकुल में जाकर वेद अध्ययन करने लगे। 6 वर्ष की छोटी आयु में आदि शंकर ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की, शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र के द्वारा माता लक्ष्मी कॊ प्रसन्न किया। कनक का अर्थ है ''स्वर्ण '' माता लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर स्वर्ण के आँवले की वर्षा की इस प्रकार  एक गरीब ब्राह्मण की निर्धनता दूर की। एक ज्योतिषी ने बालक शंकर की जन्मकुण्डली देख कर बताया की शंकर की कुण्डली में 8 वर्ष, 16 वर्ष और 32 वर्ष की आयु में ये 3 मृत्युयोग हैं। जब बालक शंकर की आठ वर्ष की आयु पूर्ण हुई तो नदी में स्नान करते समय एक मगरमच्छ ने बालक शंकर का पैर पकड़ लिया तब माता आर्याम्ब