त्रेताग्नि संग्रह संस्कार

व्यासस्मृति में कहा गया है: ''स्मार्तं वैवाहिके वह्नौ श्रौतं  वैतानिकाग्निषु।''  व्यासस्मृति और विवाहाग्निसंस्कार में बताया गया है कि गृहस्थ के स्मार्तकर्मों का सम्पादन विवाहाग्नि में सम्पादित होता है और श्रौतकर्मों का सम्पादन त्रेताग्नि  में होता है। विवाहाग्नि(गृह्याग्नि) के अलावा तीन अग्नियाँ और होती हैं जो आहवनीय, गार्हपत्य तथा दक्षिणाग्नि नाम से कही जाती हैं, इन तीनों अग्नियों का जो सामूहिक नाम है, उसे '' त्रेताग्नि, श्रौताग्नि अथवा वैतानाग्नि ''  कहा जाता है। इन तीन अग्नियों की स्थापना, उनकी प्रतिष्ठा, रक्षा तथा उनका हवन कर्म '' त्रेताग्निसंग्रह संस्कार ''  कहलाता है। मुख्य रूप से  वैदिक यज्ञों के अनेक भेदों का समाहार तीन प्रकार की यज्ञसंस्थाओं '' १. पाकयज्ञसंस्था   २. हविर्यज्ञसंस्था ३. सोमयज्ञसंस्था '' के अन्तर्गत हो जाता है। पाकयज्ञ सम्बन्धी यज्ञों का अनुष्ठान विवाहाग्नि में होता है परन्तु '' हविर्यज्ञ संस्था तथा सोमयज्ञ संस्था के कर्म त्रेताग्नि में सम्पन्न होते हैं। ''  हविर्यज्ञसंस्था के सात प्रधान यज्ञ हैं:  १.अग्न्याधेय(अग्निहोत्र) २.दर्शपौर्णमास  ३. आग्रहायण ४.चातुर्मास्य ५.निरूढपशुबन्ध ६.सौत्रामणियाग ७.पिण्डपितृयज्ञ।  सोमयज्ञसंस्था के मुख्य सात यज्ञों के नाम इस प्रकार हैं: १.अग्निष्टोम २.अत्यग्निष्टोम ३.उक्थ्य ४.षोडशी ५.वाजपेय ६. अतिरात्र ७. आप्तोर्याम॥ इन सब श्रौत यज्ञादिकों को  गृहस्थी मनुष्य द्वारा अपनी धर्मपत्नी के साथ सम्पादित करने का विधान है॥

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