बौद्ध धर्म दर्शन नास्तिक एवं अनात्मवादी दर्शन

बौद्ध दर्शन नास्तिक दर्शन है। बौद्ध धर्म ईश्वर और आत्मा का अस्तित्व स्वीकार नहीं करता है। बौद्ध दर्शन अनात्मवादी दर्शन है। बौद्ध धर्म वेद को प्रमाण नहीं मानता है॥ भगवान गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्यों (four noble truths) का निरूपण किया। तथागत बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के लिये वेद को प्रमाण नहीं माना। गौतम बुद्ध ने कहा : ज्ञान, परं शान्ति एवं निर्वाण(liberation) प्राप्त करने के लिये वेद का अध्ययन और  वैदिक कर्मकाण्ड, यज्ञ-यागादि करना, ईश्वर की भक्ति करना जरूरी नहीं है।  दु:खों से मुक्ति प्राप्त करने के लिये भगवान बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग (eight fold paths) का निरूपण किया। भगवान बुद्ध ने कहा: मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य दु:खों से मुक्ति, परम शान्ति और निर्वाण प्राप्त करना है॥
बौद्ध धर्म में तीन सम्प्रदाय हैं : १ .हीनयान २. महायान ३. वज्रयान।

बौद्ध धर्म में तीन प्रकार के धर्म ग्रन्थ हैं जिसे '' त्रिपिटक '' कहा जाता है। त्रिपिटक साहित्य में तीन पिटक हैं--- 1. अभिधम्म पिटक २. विनय पिटक ३.सुत्त पिटक।
जातक कथाओं में बोधिसत्व की कथा एवं बोधिसत्त्व की पूर्व जन्म की कथाओं का वर्णन है।

बौद्ध दर्शन के अन्तर्गत चार सिद्धान्त हैं: १.वैभाषिक, २.सौत्रान्तिक ३.योगाचार ४.माध्यमिक (शून्यवाद)।

इनमें वैभाषिक और सौत्रान्तिक ये दोनों बाह्य पदार्थों की सत्ता स्वीकार करते हैं। दोनों में अन्तर इतना ही है कि  वैभाषिक प्रत्यक्ष दीखने वाले बाह्य पदार्थों का अस्तित्व मानता है और सौत्रांतिक विज्ञान से अनुमित बाह्य पदार्थों की सत्ता स्वीकार करता है। वैभाषिक के सिद्धान्त में घट आदि बाह्य पदार्थ प्रत्यक्ष प्रमाण के विषय है।

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