श्राद्ध का रहस्य


प्रश्न :- आत्मा एक शरीर से निकल कर दूसरे शरीर में चली जाती है तो वो जो श्राद्ध वगैरह करते हैं वह श्राद्ध में पितरों के निमित्त दिया हुआ जल, अन्न, वस्त्र आदि का दान  कहाँ जाता है?

उत्तर :- छान्दोग्य उपनिषद पर जगद्गुरू भगवत् पाद आदि शंकराचार्य ने विस्तृत भाष्य भी लिखा है। आप लोग बैंक जानते हैं ना, बैंक, रुपया जमा करने वाला स्थान, आजकल तो सब जानते होंगें । एक व्यक्ति के बैंक में पर्याप्त धन जमा है कोई उसके खाते में दूसरा व्यक्ति डाले या ना डाले , उसके पास इतनी पूंजी बैंक में है, या घर में है, जिससे वो बिना दूसरे के मदद के भी जीवन यापन अच्छी तरह कर सकता है, यह बात समझ में आ गई। इसी प्रकार जिन्होंने जीवन काल में इतना पुण्य अर्जित कर लिया है, कमा लिया है, बेटे पोते उनके नाम पर, या नाती जो अधिकृत व्यक्ति हैं श्राद्ध इत्यादि करें या ना करें वो अपनी पूंजी से ही पार हो जाता है समझ गये। और जिनके पास पूंजी कम है और शरीर छूट गया नाती बेटे पोते, सम्बन्ध, संकल्प, मन्त्र, विधि सामग्री इन सबके मेल से फिर सामग्री पहुंचती है मरी हुई जीवात्मा के पास या मरे हुऐ जीव के पास। तो मान लीजिये किसी व्यक्ति के मृतक शरीर का दाह संस्कार विधिवत हुआ शास्त्रीय ढ़ग से हुअा, 12 दिन तक सभी प्रकार के और्ध्वदैहिक श्राद्ध पिण्डदान हुए , तर्पण हुआ उसकी जो पूंजी है वो जो पुण्य है उस जीव को जाकर सम्बन्ध के बल पर , संकल्प के बल पर , विधि के बल पर , सामग्री के बल पर भावना के बल पर पहुंच जाती है। गरुड़ पुराण के प्रेत कल्प में शव का चिता की अग्नि में दाह संस्कार की विधि, अस्थि संचय की विधि, दशगात्र की विधि, मलिनषोडशी, मध्यमषोडशी श्राद्ध , उत्तमषोडशी श्राद्ध, नारायणबलि श्राद्ध, सपिण्डी श्राद्ध(पिण्ड मेलन) आदि सम्पूर्ण और्ध्वदैहिक श्राद्ध पिण्डदान, तर्पण के बारे में विस्तार पूर्वक लिखा गया है ॥ जैसे आप भारत में रहते हो, आप का कोई रिश्तेदार अमेरीका में रहता है, अब वहां पर अाप भारत की मुद्रा भेजना चाहो तो ऐक्सचेंज पद्धति के अनुसार डॉलर में कन्वर्ट होकर उसको मिलता है या नहीं। आपके द्वारा भेजी हुई भारतीय मुद्रा रुपया एक्सचेंज पद्धति के अनुसार डॉलर मे कॉनवर्ट होकर आपके अमेरिकी रिश्तेदार को मिल जाती है। इसी प्रकार से जिस शरीर में जीव रहता है उस शरीर का जो आहार है वह बनकर के वह सामग्री उसके पास एक्सचेंज पद्धति के अनुसार पहुंच जाती है। मरने के बाद अगर कोई  पूर्वज प्रेत बन गया तो प्रेत का आहार, और अगर आपका पूर्वज शेर बन गया तो शेर का आहार मांस के रूप मे आपके पितृ को मिलेगा। दूसरी बात यह है की उसके नाम गंगा में अस्थि, त्रिवेणी संगम में अस्थि विसर्जित कर दी । उस पुण्य के प्रभाव से फिर उसके भावराज्य में परिवर्तन होगा । जैसे आप कल्पना करो कोई स्वप्न में पहले शेर हो गया लेकिन थोडी देर बाद उसने अपने अाप को राजाधिराज पाया , गन्धर्व  पाया , मनुष्य पाया तो भावराज्य में ही तो परिवर्तन हुआ ना वहां । भावराज्य में परिवर्तन होने से शरीर भी अलग दिखने लग गया । पहले शेर का शरीर वो अपने को मानता था शेर , अब वो राजाधिराज मानता है । ऐसे यहां की जो पुण्य की पूंजी है , अगर उसका जन्म ना हो गया हो व्यवहारिक धरातल पर समझ गये , केवल भाव राज्य का शरीर हो तो उस पुण्य की पूंजी से फिर नया भावराज्य बन जाता है उससे उसको फिर दिव्य शरीर की प्राप्ति हो जाती है । यह सब सिद्धान्त  है ।

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