हमारे सनातन वैदिक धर्म में ब्रह्मसूत्र वेदान्त दर्शन की गुरु परम्परा

हमारे सनातन वैदिक धर्म में ब्रह्मसूत्र वेदान्त दर्शन की गुरु परम्परा भगवान् नारायण से प्रारम्भ होती है। परम पुरुष नारायण आदि गुरु हैं।    गुरु परम्परा स्तोत्र : नारायणं पद्मभवं वशिष्ठं, शक्तिं च तत्पुत्र पराशरं च। व्यासं शुकं गौडपदं महान्तं, गोविन्दयोगीन्द्र मथास्यशिष्यम्॥  श्रीशंकराचार्य मथास्य पद्मपादं च हस्तामलकम् च शिष्यान्। तं त्रोटकं वार्तिककारमन्यान्, अस्मद् गुरून्सन्तत मानतोस्मि।          श्रुतिस्मृतिपुराणानामालयं करूणालयम्। नमामि भगवत्पादं शंकरं लोक शंकरं॥ शंकरं शंकराचार्यं केशवं बादरायणं। सू्त्रभाष्यकृतौ वन्दे भगवन्तौ पुन: पुन:॥ ईश्वरो गुरूरात्मेति मूर्ति: भेदविभागिने। व्योमव्याप्तदेहाय दक्षिणामूर्तये नम:॥    अर्थात् आदि गुरु भगवान् नारायण के पुत्रशिष्य  हुए स्वयम्भू ब्रह्माजी, ब्रह्माजी के पुत्रशिष्य  हुए ब्रह्मर्षि वशिष्ठ, ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के पुत्रशिष्य हुए  महर्षि शक्ति, महर्षि शक्ति के पुत्रशिष्य हुए महर्षि पराशर, महर्षि पराशर के पुत्रशिष्य हुए ब्रह्मसूत्र के रचनाकार श्रीकृष्ण द्वैपायन बादरायण महर्षि वेदव्यास, महर्षि व्यास के पुत्रशिष्य हुए ब्रह्मरात शुकदेवजी, ब्रह्मरात शुकदेवजी के शिष्य हुए गौड़पाद, गौड़पाद के शिष्य हुए महायोगी गुरु गोविन्दपाद, गुरुगोविन्दपाद के शिष्य हुए भगवत्पाद शंकराचार्य,  जगद्गुरु भगवत्पाद आदि शंकराचार्य के चार शिष्य हुए: 1. पद्मपाद 2. वार्तिककार सुरेश्वर 3. हस्तामलक 4. त्रोटक ॥                                                                                        

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