धुन्धुकारी मोक्ष का रहस्य

धुन्धुकारी मोक्ष का रहस्य: जब धुन्धुकारी को प्रेत योनि की प्राप्ति हुई तब गौकर्ण जी ने सात दिन की श्रीमद भागवत महापुराण सप्ताह का आयोजन किया धुन्धुकारी ने  सात  गाँठ वाले बाँस में रहकर सात दिन की कथा सुनी थी। प्रथम दिन की कथा विराम होने पर बाँस की प्रथम ग्रंथि का स्फोट हुआ,  दूसरे दिन की कथा विराम होने पर बाँस की दूसरी ग्रंथि का स्फोट हुआ। सात दिन बीतने पर बाँस की सात गाँठ का स्फोट हुआ और धुन्धुकारी ने प्रेत योनि त्यागकर दिव्य चतुर्भुज स्वरूप धारण कर लिया। भगवान् विष्णु के पार्षदगण  बैकुंठ धाम से दिव्य विमान लेकर आये और धुन्धुकारी को विमान में बैठाकर बैकुंठ धाम ले गये। धुन्धुकारी को सारूप्य मुक्ति प्राप्त हुई। धुन्धुकारी ही सामान्य जीव है, पाँचभौतिक स्थूल शरीर ही बाँस है, बाँस के सात गाँठ इस सूक्ष्म शरीर के सात चक्र है: मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूरक चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र, औैर सहस्रार चक्र॥ सप्ताह का अर्थ सात वार है : रविवार,  सोमवार,  मंगलवार,  बुधवार, बृहस्पतिवार,  शुक्रवार,  शनिवार। मानव शरीर की मृत्यु इन सात दिनों में ही होती है। इन सात दिनों में धुन्धुकारी रूपी जीव सात चक्र से युक्त बाँस रूपी मनुष्य शरीर के द्वारा भागवत महापुराण की रहस्यमयी कथा सुनने के पश्चात्  योगमार्ग की साधना  का ज्ञान प्राप्त करता  है और कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करके मूलाधार आदि सात चक्रों का भेदन करके ऋतम्भरा प्रज्ञा प्राप्त करता है तथा स्थितप्रज्ञ ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त करता है तथा मोक्ष को प्राप्त करता है॥

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